आठ साल की मासूम मानसी, जिसे गुब्बारे बहुत पसंद थे, एक ऑटिस्टिक बच्ची थी। ऑटिज्म एक मानसिक विकार होता है जिसमें व्यक्ति को दूसरों की बात समझने में कठिनाई होती है। मानसी के साथ भी यही समस्या थी। वह सिर्फ अपनी मां की बातें समझ पाती थी और उसके बोलने की क्षमता भी बहुत कम थी। वह अक्सर बहुत कम बोलती थी, और उसकी बातों में स्पष्टता नहीं होती थी।
मानसी के घर में माता-पिता, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, दादा-दादी सभी थे, लेकिन उसकी स्थिति के कारण कोई उसे प्यार नहीं करता था। सब उसे बोझ समझते थे और उससे छुटकारा पाना चाहते थे। मगर उसकी मां उसे दिलोजान से प्यार करती थी। उसने अपनी बेटी के लिए दूसरा बच्चा भी नहीं प्लान किया, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि मानसी को कोई और नजरअंदाज करे।
राखी का त्योहार था और मानसी की मां ने अपने मायके जाने का फैसला किया। दोनों ने ट्रेन का सफर चुना। रात का समय था, मानसी सो रही थी और उसकी मां वॉशरूम गई थी। जब वह वापस आ रही थी, तो उसने देखा कि कुछ शराबी लोग झगड़ रहे थे। वह उनसे बचकर निकलने की कोशिश कर रही थी, तभी एक शराबी अचानक उसके ऊपर गिर पड़ा, जिससे वह संतुलन खो बैठी और चलती ट्रेन से नीचे गिर गई। उसी पल उसकी मृत्यु हो गई।
मानसी अपनी मां के साथ हुए हादसे से पूरी तरह अनजान सोती रही। जब सुबह उसकी आंख खुली, तो ट्रेन किसी स्टेशन पर खड़ी थी। उसने अपनी नजरें दौड़ाई, मानो वह अपनी मां को खोज रही हो। तभी उसकी नजर स्टेशन पर गुब्बारे बेचने वाली एक महिला पर पड़ी और वह खुश होकर ट्रेन से उतर गई। वह महिला के पीछे-पीछे चल दी। चलते-चलते अचानक मानसी को चक्कर आ गया और वह गिर पड़ी।
जब मानसी की आंखें खुलीं, तो वह कुछ भी समझ नहीं पा रही थी। उसे अपनी मां का चेहरा भी नहीं दिख रहा था। वह घबरा गई। तभी एक 15-16 साल का लड़का, जिसका नाम महेंद्र था, वहां आया और उससे प्यार से बात करने लगा। मानसी को उसकी बातें समझ नहीं आईं, लेकिन वह इतना जान गई कि यह लड़का उसका अपना है।
महेंद्र एक अनाथ था और एक ढाबे पर काम करता था। वह 10वीं के एग्जाम की तैयारी कर रहा था और बस्ती के बच्चों को ट्यूशन भी देता था। उस दिन वह सुबह-सुबह अपने बस्ती वाले घर से ढाबे की ओर जा रहा था, जब उसने मानसी को गिरते हुए देखा। उसने आसपास के लोगों से मानसी के बारे में पूछा, लेकिन किसी ने उसे नहीं पहचाना। तब वह उसे पास के अस्पताल ले गया। अस्पताल में जब डॉक्टर ने उससे मानसी का रिश्ता पूछा, तो उसने कहा, "यह मेरी छोटी बहन है।"
मानसी के कंधे पर एक छोटा सा बच्चा बैग था। डॉक्टर ने बैग खोलने के लिए महेंद्र को दिया। उसमें एक कागज मिला, जो डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन था। महेंद्र ने वह प्रिस्क्रिप्शन डॉक्टर को दिखाया, जिससे पता चला कि मानसी एक ऑटिस्टिक बच्ची है। उसने डॉक्टर से सारी बातें समझीं और उसके मन में ख्याल आया कि शायद मानसी के घरवाले उसे छोड़कर चले गए होंगे। यह सोचते ही उसके मन में एक खुशी की लहर दौड़ गई, "इसका मतलब मानसी मेरी बहन है।" उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया, "हे भगवान! मुझे आज राखी के दिन ही बहन देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।"
महेंद्र मानसी को अपने घर ले आया और उसे अपनी बहन नहीं, बल्कि बेटी की तरह बड़ा करने लगा। वह खुद काम करता, पढ़ाई करता और मानसी की देखभाल करता। उसने मानसी का इलाज अच्छी जगह कराया और उसे सामान्य बच्चों की तरह स्कूल भेजा।
आज दस साल बाद फिर वही राखी का दिन है। अब मानसी 18 साल की हो चुकी है। उसने साइंस से 12वीं पास कर ली है और आगे की पढ़ाई फिजिक्स से करना चाहती है। महेंद्र अब ढाबे पर काम नहीं करता, बल्कि उसका मालिक है। इन दस सालों में उसने उसी शहर में एक बड़ा ढाबा खोल लिया है, जहां कई लोग काम करते हैं। उसने मानसी के लिए एक सुंदर सा घर बनाया है, जहां दोनों भाई-बहन, दो नौकर और मानसी की खास मौसी रहते हैं, जो मानसी का ख्याल रखती हैं।
महेंद्र ने खुद पढ़ाई की, मानसी को पढ़ाया और अब वह एक सीए है, जो एक बड़ी कंपनी में काम करता है। उसने प्रतिज्ञा ली थी कि वह अपनी बहन को एक सामान्य जिंदगी देगा। इसके लिए उसने खुद का पेट काट-काट कर और दिन-रात मेहनत करके पैसा कमाया और मानसी का इलाज कराया। अब मानसी एक सामान्य लड़की की तरह बातें समझती है और दिनभर बोलती है। महेंद्र कितना ही थका क्यों न हो, वह ऑफिस से आकर पहले बहन से बातें करता है, फिर खाना खाता है। अब मानसी को देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह कभी ऑटिस्टिक बच्ची थी।
राखी के दिन दोनों मिलकर घर सजाते हैं, और महेंद्र मानसी का जन्मदिन भी इसी दिन मनाता है। जैसे यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि उनके लिए एक जश्न हो।
किसी ने सच ही कहा है, "जिसका कोई नहीं होता, उसका भगवान होता है।"
रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ!
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"राखी का बंधन" एक दिल को छू लेने वाली कहानी है मानसी और महेंद्र की, जिनकी जिंदगी एक अनजाने बंधन में बंध जाती है। मानसी, एक ऑटिस्टिक बच्ची, जिसे उसकी मां के अलावा कोई प्यार नहीं करता था, एक दिन अनाथ हो जाती है। मगर उसकी मुलाकात महेंद्र से होती है, जो उसे अपनी बहन की तरह अपनाता है। महेंद्र ने मानसी की देखभाल, शिक्षा और इलाज के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। दस साल बाद, मानसी एक सामान्य और खुशहाल जिंदगी जी रही है, और महेंद्र ने अपनी मेहनत से एक खुशहाल भविष्य का निर्माण किया है। यह कहानी इस बात की मिसाल है कि सच्चे प्यार और समर्पण के आगे कोई भी चुनौती टिक नहीं सकती।
Waahhh very nice 👌 bhut khub likha jiska koii nhii uska god
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