रात के 10 बज रहे थे। राजन थके-हारे अपने छोटे से कमरे में लौटा। पुरानी सी मेज पर बिखरे हुए कागज़ और किताबें उसकी दिन-रात की मेहनत का प्रमाण थे। वह दिल्ली की एक तंग गली में बने एक किराए के मकान में रहता था। उसकी माँ गाँव में रहती थीं, और पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। घर की जिम्मेदारी ने उसे बचपन से ही गंभीर बना दिया था।
राजन एक सामान्य मिडिल क्लास लड़का था, जिसके सपने बड़े थे, लेकिन जेब छोटी। सरकारी नौकरी पाने का सपना लिए वह दिन-रात पढ़ाई करता था। सुबह ट्यूशन पढ़ाने जाता, फिर लाइब्रेरी में दिनभर पढ़ाई करता और रात में एक कॉल सेंटर में काम करता। ये सब करके भी मुश्किल से महीने का खर्चा निकलता।
राजन के जीवन में संघर्ष तब शुरू हुआ जब उसके पिता की अचानक मृत्यु हो गई। माँ ने सिलाई करके घर चलाया, लेकिन राजन ने जल्दी समझ लिया कि गरीबी से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता पढ़ाई है। उसने कड़ी मेहनत शुरू कर दी।
कॉलेज के दिनों में राजन की मुलाकात सीमा से हुई। सीमा पढ़ाई में तेज़ और व्यक्तित्व में आत्मविश्वास से भरपूर लड़की थी। दोनों के बीच जल्दी ही दोस्ती हो गई। सीमा ने राजन की पढ़ाई में बहुत मदद की।
धीरे-धीरे, राजन को महसूस हुआ कि वह सीमा को पसंद करने लगा है। लेकिन उसके मन में एक डर था—उसकी गरीबी। सीमा एक अच्छे और संपन्न परिवार से थी। राजन को लगता था कि उसका प्यार उसके संघर्षों से भारी पड़ जाएगा।
एक दिन, सीमा ने राजन से पूछा, "तुम इतने चुप-चुप क्यों रहते हो?"
राजन ने झिझकते हुए कहा, "कुछ नहीं, बस... सोचा था कि पढ़ाई पर ध्यान दूं।"
सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे जैसे दोस्त हर किसी को नहीं मिलते। तुम्हारी मेहनत देखकर लगता है कि तुम जरूर सफल होगे।"
उसके ये शब्द राजन के दिल को सुकून देते थे, लेकिन साथ ही उसे अंदर से कमजोर भी कर देते। वह जानता था कि सीमा के सपनों में जगह बनाने के लिए उसे अभी लंबा सफर तय करना होगा।
समय बीतता गया। राजन और सीमा की दोस्ती गहरी हो गई। राजन अपने सपनों के करीब पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा था। लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बार-बार आड़े आती। एक दिन सीमा ने उससे कहा, "राजन, क्यों न तुम अपने कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ दो? इससे तुम्हारी पढ़ाई में बाधा आती है।"
राजन ने भारी मन से जवाब दिया, "अगर मैं नौकरी छोड़ दूं तो मेरा किराया, किताबें और खाना कैसे चलेगा?"
सीमा के चेहरे पर उदासी आ गई। उसने राजन की मदद करने का मन बनाया, लेकिन वह जानती थी कि राजन स्वाभिमानी है और किसी की मदद आसानी से स्वीकार नहीं करेगा।
पढ़ाई के आखिरी साल में सीमा को अपने पापा की ट्रांसफर की वजह से शहर छोड़ना पड़ा। जाते वक्त उसने राजन से कहा, "मैं चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द अपने सपनों को पूरा करो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।"
सीमा के जाने के बाद राजन अकेला महसूस करने लगा, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। दिन-रात मेहनत की, और आखिरकार सरकारी परीक्षा पास कर ली। उसकी नौकरी दिल्ली में ही लग गई।
एक दिन जब राजन ने तय किया कि अब सीमा से मिलकर उसके परिवार से उसका हाथ मांगना चाहिए, तब राजन को सीमा की शादी का निमंत्रण मिला। निमंत्रण पत्र उसके लिए एक चोट की तरह था। उसने सोचा कि अगर वह अपनी भावनाओं को समय रहते व्यक्त कर पाता, तो शायद कहानी कुछ और होती।
शादी के दिन, राजन ने सीमा को देखा। वह लाल जोड़े में बहुत खूबसूरत लग रही थी। राजन ने मन ही मन उसे शुभकामनाएँ दीं और चुपचाप वहाँ से चला गया।
राजन ने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ पाया—सफलता, पैसा, इज्जत। लेकिन सीमा का प्यार उसकी जिंदगी में हमेशा अधूरा रहा। उसने अपने संघर्षों से सीखा कि जिंदगी में कुछ चीजें समय और परिस्थितियों के कारण अधूरी रह जाती हैं।
उस रात राजन ने अपनी डायरी में लिखा,
"कुछ कहानियाँ पूरी होकर भी अधूरी रह जाती हैं। मेरी कहानी ऐसी ही एक कहानी है।"
राजन ने अपनी अधूरी मोहब्बत को स्वीकार कर लिया और अपने जीवन को आगे बढ़ाने का फैसला किया। लेकिन सीमा की यादें उसके जीवन का
हिस्सा बनी रहीं, जैसे किसी अधूरी कविता की धुन।
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